लोकसभा चुनावों के परिणाम भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण कसौटी साबित होंगे। इस बार के चुनावी नतीजों से भाजपा की रणनीतिक कौशल और तैयारियों की परख होगी, खासकर जब पार्टी ने सबसे ज्यादा सियासी प्रयोग किए हैं। महीनों की तैयारी और जनता के बीच अपने मुद्दों को प्रभावी ढंग से पेश करने के प्रयासों का मूल्यांकन अब नतीजों के माध्यम से होगा।



भाजपा की चुनावी तैयारियां और रणनीति

भाजपा ने बूथ से लेकर राज्य स्तर तक कई कार्यक्रम चलाए हैं। पार्टी ने 80 सीटों को जीतने के लक्ष्य के साथ चुनावी तैयारियों में काफी मेहनत की है। पार्टी ने बूथ प्रबंधन, पन्ना प्रमुख, युवा, महिला, किसान, अधिवक्ता और प्रबुद्धों के सम्मेलन के माध्यम से जनता से संवाद किया। इसके अलावा, भाजपा ने 45 से अधिक तरह के संपर्क, सम्मेलन, संवाद और बैठकों के कार्यक्रम शुरू किए, ताकि हर वर्ग के युवा, महिला और पुरुष मतदाताओं को साधा जा सके।

सांसदों के टिकट काटकर जीत की रणनीति

भाजपा ने हार की हर आशंका को चिह्नित करते हुए कई मौजूदा सांसदों का टिकट काटा। पार्टी ने कुल 17 सांसदों का टिकट काटकर उनकी सीटों पर जीत पक्की करने के लिए नई रणनीति बनाई। इन सीटों पर हार-जीत के नतीजे भाजपा की रणनीति की परीक्षा के रूप में देखे जाएंगे।



यादव वोट बैंक साधने की कोशिश

भाजपा ने यादव वोट बैंक को अपने पाले में लाने के लिए कई प्रयास किए। पार्टी ने मोहन यादव को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया और यूपी के मैदान पर उतारकर यादव बिरादरी को साधने की रणनीति अपनाई। इसके अलावा, सपा के कई नेताओं को भाजपा में शामिल कराया गया। इस रणनीति का कितना असर रहा, यह चुनाव परिणामों से पता चलेगा।

 लोकसभा क्लस्टर की परख

भाजपा ने प्रदेश में चार लोकसभा क्षेत्रों को मिलाकर कुल 20 क्लस्टर बनाए। इन क्लस्टरों के माध्यम से हर मतदाता तक पहुंचने की रणनीति पर काम किया गया। क्लस्टरों के जरिये घर-घर मतदाता पर्ची पहुंचाना, मोदी पत्र का वितरण, परिवार पर्ची का वितरण और पन्ना प्रमुखों की निगरानी जैसे संगठन के 20 प्रमुख कामों पर फोकस किया गया।



स्मार्ट फोन उपयोगकर्ताओं तक पहुंच

स्मार्ट फोन रखने वाले सभी मतदाताओं की बूथवार सूची तैयार की गई और दो लाख व्हाट्सएप ग्रुप बनाए गए ताकि केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं की जानकारी दी जा सके।

लाभार्थी वर्ग को साधने के प्रयास

केंद्र और प्रदेश की जन कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थियों को एक वर्ग मानते हुए हर लाभार्थी तक पहुंचने की कोशिशें की गईं। चुनाव शुरू होने से छह महीने पहले से ही उनसे संपर्क करने के लिए बूथवार संपर्क अभियान चलाया गया।

प्रमुख अभियान

– मतदाताओं के नाम मोदी का पत्र भेजना
– टिफिन बैठक के जरिये संपर्क, 50 हजार से अधिक बैठकें हुईं
– महासंपर्क अभियान, विशेष संपर्क अभियान और की-वोटर संपर्क अभियान
– विधानसभावार जातीय व सामाजिक सम्मेलन
– संगठन के किसान, युवा, महिला, ओबीसी और एससी वर्ग के सम्मेलन
– विकसित भारत संकल्प यात्रा और विकसित ग्राम चौपाल कार्यक्रम
– मंत्री, सांसद व विधायकों द्वारा गांवों में रात्रि विश्राम कर जनता से फीडबैक लेना
– गांव चलो अभियान के तहत ग्राम चौपाल लगाकर विकास कार्यों की जानकारी देना
– मंडल समिति और शक्ति केंद्रों के जरिये बूथवार मतदाताओं से संपर्क अभियान
– चुनाव से तीन पहले ही पुनर्गठन कर बूथों को सशक्त बनाना

भाजपा ने इस चुनाव में विभिन्न स्तरों पर कई सियासी प्रयोग किए हैं। नतीजे न केवल सत्ता का स्वरूप तय करेंगे, बल्कि भाजपा की रणनीतिक कौशल और तैयारियों की भी परख होगी। अब देखने वाली बात यह होगी कि भाजपा की प्रयोगशालाओं के नतीजे कितने कारगर साबित होते हैं और यह पार्टी के भविष्य के लिए क्या संदेश लेकर आते हैं।

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