अमेठी में इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा की स्मृति ईरानी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा। चुनाव से पहले ऐसा माना जा रहा था कि यहां जीत-हार का अंतर बहुत मामूली होगा, लेकिन नतीजों ने सबको चौंका दिया। स्मृति ईरानी डेढ़ लाख से अधिक मतों से चुनाव हार गईं। हाईप्रोफाइल अमेठी सीट एक बार फिर सुर्खियों में है। 2019 में स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को जितने मतों से हराया था, इस बार वे उससे तीन गुना अधिक मतों से हार गईं। इस चुनाव में स्मृति ईरानी कांग्रेस के किशोरी लाल शर्मा से एक लाख 67 हजार से ज्यादा वोटों से हार गईं। इस हार का अंतर सबको चौंकाने वाला साबित हुआ। इस जीत में कांग्रेस के किशोरी लाल शर्मा का चेहरा नहीं, बल्कि प्रियंका गांधी वाड्रा की रणनीति अहम रही।
अमेठी- गांधी परिवार का गढ़
अमेठी की सियासत पर नजर डालें तो यह क्षेत्र हमेशा से गांधी परिवार का गढ़ रहा है। 2014 में भाजपा की स्मृति ईरानी ने यहां से सियासी पारी की शुरुआत की थी। उन्हें 3,00,748 मत मिले थे, लेकिन वे राहुल गांधी से चुनाव हार गई थीं। उस चुनाव में राहुल गांधी ने 4,08,651 वोट हासिल किए थे। इसके बाद स्मृति ईरानी ने अमेठी में लगातार सक्रियता बनाए रखी। 2019 के चुनाव में स्मृति ईरानी ने 4,68,514 वोट पाकर राहुल गांधी को 55,120 मतों के अंतर से पराजित कर दिया।
स्मृति ईरानी का फोकस अमेठी पर…
इस जीत के बाद स्मृति ईरानी ने केंद्रीय मंत्री की जिम्मेदारी संभालते हुए भी अपना पूरा फोकस अमेठी पर ही रखा। उन्होंने यहीं पर घर भी बनवा लिया और गांव-गांव जनसंवाद कार्यक्रम चलाए। नाली, खड़ंजा से लेकर पेंशन तक की समस्याओं का समाधान कराया। बावजूद इसके, वह लोगों के दिलों में जगह नहीं बना सकीं। नतीजा यह हुआ कि इस बार के चुनाव में स्मृति ईरानी ने जितने मतों से राहुल गांधी को हराया था, उससे तीन गुना अंतर से वे किशोरी लाल शर्मा से हार गईं।
अमेठी की जनता का रुझान जानने के लिए हम जायस के बहादुरपुर मोड़ पर पहुंचे। वहां चाय की दुकान पर चुनाव परिणाम को लेकर स्थानीय लोगों के बीच बहस हो रही थी। चाय की चुस्कियों के साथ वीरेंद्र ने कहा कि एक बात तो तय है कि अमेठी की पहचान गांधी परिवार से है। बाहर जाने पर जैसे ही अमेठी का जिक्र करो, राजीव गांधी से लेकर राहुल गांधी की बातें शुरू हो जाती हैं। उनकी बात को बीच में काटते हुए रामसुंदर कहने लगे कि अमेठी के लिए गांधी परिवार ने क्या नहीं किया…। बात खत्म होती इससे पहले ही शत्रोहन बोल पड़े कि भैया, कोई बात नहीं, जब जागो तब सवेरा, वही तो अमेठी की जनता अब अपनी गलती सुधार ली है।
अमेठी के मतदाताओं के मन में भाजपा के प्रति नाराजगी
कांग्रेस की जीत के पीछे की रणनीति पर बात करें तो भले ही कांग्रेस ने नामांकन के अंतिम दिन किशोरी लाल शर्मा को प्रत्याशी बनाया हो, लेकिन पार्टी ने ठोस रणनीति के तहत काम किया। अमेठी के मतदाताओं के मन में भाजपा के प्रति नाराजगी को हथियार बनाया गया। भाजपा के ऐसे नेताओं पर ध्यान रखा गया जो उपेक्षित थे। सबसे बड़ी रणनीति यह रही कि प्रत्याशी को लेकर अंतिम समय तक भाजपा को उलझाए रखा। अंदर ही अंदर तैयारी चलती रही। वहीं, स्मृति ईरानी हरेक सभा में खुद ही कांग्रेस पर हमलावर रहकर उसे चर्चा में बनाए रखीं। इसके इतर राहुल गांधी हों या प्रियंका गांधी, प्रचार के दौरान दोनों ने लोगों को भावनात्मक तौर पर जोड़ा। बचपन की यादों को साझा किया। पिता राजीव गांधी की शहादत को याद किया। केएल शर्मा ने खुद को गांधी परिवार का सिपाही बताकर कांग्रेसियों को एकजुट किया। योजना के तहत महज 17 दिन में ही केएल शर्मा ने पूरी बाजी पलट दी। हर जगह बस वह एक बात कहते नजर आए कि यह चुनाव हम नहीं, अमेठी की जनता लड़ रही है।
अमेठी: विशेषज्ञों की राय…
विशेषज्ञों की राय में आरआरपीजी कॉलेज के समाजशास्त्र विभाग के अध्यक्ष डॉ. धनंजय का कहना है कि अमेठी की पहचान गांधी परिवार से होने के फैक्टर ने काम किया, लेकिन कई और कारण भी रहे जिन्होंने कांग्रेस की जीत आसान की। जैसे धर्म का मुद्दा नहीं चल सका, जातीय मतों का ध्रुवीकरण रोकने में भाजपा सफल नहीं हो सकी। संविधान हो या मंगलसूत्र, विपक्ष के इन मुद्दों पर भाजपा सफाई देती नजर आई लेकिन, वह अपना कोई विजन नहीं ला सकी। स्थानीय स्तर पर भी कई कारण रहे, जैसे चुनिंदा नेताओं को तरजीह देना और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा। इस तरह प्रियंका गांधी की कुशल रणनीति और भावनात्मक अपील ने अमेठी में कांग्रेस को बड़ी जीत दिलाई। जनता ने भी अपनी पुरानी गलती सुधारते हुए इस बार कांग्रेस को समर्थन दिया और स्मृति ईरानी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा।