देशभर के सरकारी कर्मचारी लंबे समय से पुरानी पेंशन योजना (OPS) की बहाली की मांग कर रहे हैं। अब यह मुद्दा एक बड़े आंदोलन के रूप में उभरा है, जिसका केंद्र दिल्ली का जंतर मंतर बना है। इस आंदोलन को “नेशनल मिशन फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम भारत” के नाम से जाना जाता है, और इसमें देशभर के विभिन्न राज्य और केंद्र सरकार के कर्मचारी एकजुट होकर पुरानी पेंशन योजना की बहाली के लिए आवाज उठा रहे हैं। इसके पीछे एक बड़ी वजह यह है कि कर्मचारी केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित ‘यूनिफाइड पेंशन स्कीम’ (यूपीएस) से संतुष्ट नहीं हैं, जिसे सरकार ने एनपीएस (न्यू पेंशन स्कीम) में सुधार के रूप में पेश किया है।
OPS बहाली की मांग और आंदोलन
17 नवंबर 2024 को दिल्ली के जंतर मंतर पर आयोजित ‘पेंशन जयघोष महारैली’ में हजारों सरकारी कर्मचारी जुटे। इस रैली की अध्यक्षता ऑल इंडिया एनपीएस एम्पलाइज फेडरेशन (एआईएनपीएसईएफ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. मंजीत सिंह पटेल ने की। डॉ. पटेल ने कहा कि यह आंदोलन किसी राजनीतिक दल से जुड़ा हुआ नहीं है, बल्कि यह कर्मचारियों के भविष्य की सुरक्षा के लिए है। उनका कहना था कि केंद्र सरकार को कर्मचारियों की इस मांग पर ध्यान देना चाहिए और OPS को बहाल करना चाहिए, ताकि सरकारी कर्मचारियों का भविष्य सुरक्षित रहे। कर्मचारियों का कहना है कि ‘यूनिफाइड पेंशन स्कीम’ (यूपीएस) के तहत उन्हें कोई वास्तविक फायदा नहीं होने वाला है। यह योजना अंशदायी योजना (NPS) का ही एक विस्तार है, जिसमें कर्मचारियों की अपनी मेहनत की रकम उनके खाते में जमा होती है, लेकिन रिटायरमेंट के बाद उस रकम का ठीक से उपयोग नहीं हो पाता है। यही कारण है कि कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना (OPS) की बहाली की मांग कर रहे हैं, जिससे उन्हें जीवनभर सुरक्षा मिल सके।
कर्मचारियों की मुख्य मांगें
रैली के दौरान कर्मचारियों ने दो मुख्य मांगों को प्रमुखता से उठाया:
1. कर्मचारी अंशदान पर जीपीएफ (जनरल प्रोविडेंट फंड) की सुविधा।
2. 20 वर्षों की सेवा के बाद अंतिम वेतन का 50% पेंशन के रूप में गारंटी।
इसके अलावा, यूपीएस को लेकर कर्मचारियों ने यह भी कहा कि यह योजना कर्मचारियों के लिए एक तरह से धोखा है, क्योंकि इसमें उनके रिटायरमेंट के बाद पेंशन की कोई ठोस गारंटी नहीं है। इस योजना में कर्मचारी अपनी पूरी जिंदगी काम करने के बाद भी आर्थिक असुरक्षा का सामना कर सकते हैं।
कर्मचारियों का आंदोलन…
राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार, और महाराष्ट्र जैसे राज्यों से आए कर्मचारियों ने इस रैली में भाग लिया। इन कर्मचारियों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लिए गए ऐतिहासिक निर्णय की उम्मीद सभी को है, जो उनकी पुरानी पेंशन योजना की मांग को पूरा कर सके। कर्मचारियों का मानना है कि यदि पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू किया जाता है, तो यह न केवल उनका भविष्य सुरक्षित करेगा, बल्कि सरकार के प्रति उनके विश्वास को भी मजबूती मिलेगी।
नई पेंशन योजना की आलोचना
साल 2024 में जब केंद्र सरकार ने एनपीएस में सुधार कर ‘यूनिफाइड पेंशन स्कीम’ (यूपीएस) लागू करने का ऐलान किया, तो कर्मचारियों के बीच इसे लेकर निराशा का माहौल बन गया। यह योजना केवल एक नया नाम है, जो मूलतः एनपीएस का ही एक संशोधित रूप है। हालांकि सरकार ने इस योजना को 1 अप्रैल 2025 से लागू करने का निर्णय लिया है, लेकिन कर्मचारियों का कहना है कि यह योजना उनके लिए लाभकारी नहीं है। अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (एआईडीईएफ) ने प्रधानमंत्री द्वारा बुलाई गई कर्मचारी संगठनों की बैठक का बहिष्कार किया, क्योंकि उनका मानना था कि पुरानी पेंशन योजना की बहाली ही एकमात्र समाधान है।
कर्मचारी संगठनों का समर्थन और विरोध
इस आंदोलन को 100 से अधिक केंद्रीय और राज्य कर्मचारी संगठनों का समर्थन प्राप्त है। इन संगठनों का कहना है कि यदि पुरानी पेंशन योजना की बहाली नहीं की जाती है, तो वे अपनी आवाज बुलंद करते रहेंगे। कर्मचारियों ने कई स्थानों पर रैलियां और विरोध प्रदर्शन आयोजित किए हैं। वे यूपीएस को खारिज कर रहे हैं और कह रहे हैं कि यह योजना न तो कर्मचारियों के लिए फायदे की है और न ही सरकार के लिए।
कर्मचारियों की जीवन सुरक्षा और OPS का महत्व
कर्मचारी संगठनों का कहना है कि पुरानी पेंशन योजना (OPS) में कर्मचारियों को आर्थिक सुरक्षा मिलती थी, जो यूपीएस और एनपीएस जैसी योजनाओं में नहीं मिल सकती। OPS के तहत कर्मचारी अपनी पूरी सेवा के दौरान अर्जित अधिकारों का पूरा लाभ उठाते थे, और रिटायरमेंट के बाद भी उन्हें स्थिर पेंशन मिलती थी। वहीं, एनपीएस और यूपीएस की योजनाओं में कर्मचारियों के योगदान के बावजूद उनकी पेंशन काफी कम हो सकती है, जो उनके जीवनभर की मेहनत के लिए बहुत कम है।
आंदोलन को जारी रखने का संकल्प
कर्मचारी संगठनों ने यह स्पष्ट किया है कि जब तक पुरानी पेंशन योजना (OPS) बहाल नहीं होती, तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा। इस आंदोलन को लेकर कर्मचारियों में गहरी नाराजगी और निराशा है, और वे केंद्र सरकार से उम्मीद कर रहे हैं कि वे उनके इस संवेदनशील मुद्दे पर जल्द कोई ऐतिहासिक निर्णय लेंगे।
देशभर के सरकारी कर्मचारियों का यह आंदोलन अब एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा बन चुका है। कर्मचारियों की मांग न केवल उनके जीवन के सुरक्षा की मांग है, बल्कि यह सरकार के प्रति उनके विश्वास और समर्थन को भी प्रभावित कर सकता है। सरकार के लिए यह एक बड़ा कदम है, और अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मुद्दे पर ऐतिहासिक निर्णय लेते हैं, तो यह कर्मचारियों के भविष्य को लेकर एक नई दिशा तय कर सकता है। यह आंदोलन न केवल सरकारी कर्मचारियों के लिए बल्कि देश की सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।