लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली बार गठबंधन सरकार का नेतृत्व करेंगे। अब तक मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने भाजपा की बहुमत वाली सरकार चलाई है, लेकिन इस बार उन्हें 12 सहयोगी दलों के साथ तालमेल करके सरकार चलानी होगी। इसका असर भाजपा के प्रमुख एजेंडे जैसे यूसीसी (समान नागरिक संहिता) और एक देश एक चुनाव पर भी पड़ सकता है।



लोकसभा चुनाव: मोदी का तीसरा कार्यकाल- गठबंधन की चुनौती

चुनावी राजनीति में प्रवेश के बाद से नरेंद्र मोदी ने लगभग ढाई दशकों से बहुमत वाली सरकारों की कमान संभाली है। वर्ष 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद, उन्होंने राज्य में तीन बार बहुमत वाली सरकार चलाई। राष्ट्रीय राजनीति में आने के बाद, उन्होंने दो बार केंद्र में बहुमत वाली सरकार का नेतृत्व किया। लेकिन इस बार, भाजपा के अपने दम पर बहुमत से चूकने के कारण, करीब 23 साल बाद पीएम नरेंद्र मोदी पहली बार गठबंधन की सरकार का नेतृत्व करेंगे।

लोकसभा चुनाव:  12 सहयोगी दलों का प्रतिनिधित्व

इस चुनाव में भाजपा ने अपने दम पर 240 सीटें हासिल की हैं, जो बहुमत से 22 कम है। दूसरी ओर, टीडीपी के 16 और जदयू के 12 सांसद जीतकर आए हैं। इन दोनों दलों के संयुक्त सीटों की संख्या 28 है। इसके अलावा, शिवसेना (शिंदे गुट) की सात सीटें हैं। अन्य सहयोगी दलों में लोजपा (आर) के पांच, जेएनपी और रालोद के दो-दो, और एनसीपी, अपना दल, एजीपी, हम, आजसू और एजीपी के पास एक-एक सीटें हैं। जाहिर तौर पर गठबंधन में चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार का मजबूत दखल होगा, साथ ही शेष दस दलों को भी साधे रखने की चुनौती होगी।



लोकसभा चुनाव:  सरकार की स्थिरता

गठबंधन सरकार के बावजूद नई सरकार की स्थिरता पर कई कारणों से खतरा नहीं होगा। बिहार में नीतीश कुमार को भाजपा की ताकत का अंदाजा है, जबकि नायडू को केंद्र के सहयोग की जरूरत पड़ेगी। इनके अलग होने पर भी मोदी सरकार को बहुमत खोने का डर नहीं रहेगा। हालांकि, नीतीश कुमार राज्य के लिए विशेष पैकेज या जल्द चुनाव का दबाव बना सकते हैं। इसके अलावा, बिहार में भाजपा के लिए नीतीश को चेहरा बनाए रखने की मजबूरी है।

लोकसभा चुनाव:  बड़े एजेंडे पर संशय

भाजपा की योजना प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बना कर पूरे देश में यूसीसी लागू करने और सभी तरह के चुनाव एक साथ कराने की दिशा में आगे बढ़ने की थी। हालांकि, गठबंधन सरकार होने के कारण यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा इन अहम एजेंडे पर कैसे आगे बढ़ती है। गौरतलब है कि इससे पहले गठबंधन सरकार की मजबूरियों के कारण वाजपेयी सरकार ने अनुच्छेद 370, राम मंदिर और यूसीसी को अपने एजेंडे से बाहर कर दिया था।

लोकसभा चुनाव:  मंत्रिमंडल में सहयोगियों की भागीदारी

नई सरकार में सहयोगियों का प्रतिनिधित्व बढ़ना तय है। पिछली सरकार में मूल शिवसेना और अकाली दल के साथ छोड़ने के कारण सरकार में महज तीन सहयोगियों (आरपीआई, अपना दल और लोजपा-पारस) का ही प्रतिनिधित्व था। इस बार भाजपा के अल्पमत में होने के कारण ज्यादा सहयोगियों को मौका मिलना तय है। इसके अलावा, इस बार मंत्रिमंडल में विभाग बंटवारे को लेकर भी संतुलन की स्थिति दिख सकती है।
2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों से यह स्पष्ट होता है कि नरेंद्र मोदी को अब गठबंधन की सरकार चलानी होगी, जिसमें उन्हें 12 सहयोगी दलों के साथ तालमेल बैठाना होगा। इसका असर न केवल सरकार की स्थिरता पर पड़ेगा, बल्कि भाजपा के प्रमुख एजेंडे जैसे यूसीसी और एक देश एक चुनाव पर भी देखने को मिलेगा। नई सरकार में सहयोगियों की भागीदारी बढ़ेगी और विभागों के बंटवारे में संतुलन बनाने की चुनौती भी होगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि नरेंद्र मोदी कैसे इन चुनौतियों का सामना करते हैं और गठबंधन सरकार को सफलतापूर्वक चलाते हैं।

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