दिल्ली की सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखने और आगामी विधानसभा चुनाव में जीत सुनिश्चित करने के लिए आम आदमी पार्टी (AAP) के प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने बड़ा दांव खेला है। AAP ने अपने 31 में से 18 मौजूदा विधायकों के टिकट काट दिए हैं। यह कदम न केवल पार्टी की रणनीतिक सोच को दर्शाता है बल्कि यह भी साबित करता है कि अरविंद केजरीवाल सत्ता विरोधी लहर को लेकर कितने सतर्क हैं।
18 विधायकों के टिकट कटे…
आम आदमी पार्टी ने अब तक दिल्ली की कुल 70 विधानसभा सीटों में से 31 सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। इनमें से 18 विधायकों के टिकट काटे गए हैं। केजरीवाल ने स्पष्ट संदेश दिया है कि वह किसी भी सूरत में सत्ता विरोधी लहर (Anti-incumbency) का सामना नहीं करना चाहते। दिल्ली के चुनावी समीकरणों में केजरीवाल का यह कदम बेहद खास है। उन्होंने सिर्फ विधायकों के टिकट नहीं काटे, बल्कि नए चेहरों को मौका देकर जनता के बीच नई ऊर्जा लाने का प्रयास किया है। यह कदम पार्टी के लिए चुनावी मजबूती का आधार बन सकता है।
नए चेहरे और बदली हुई सीटें
AAP ने कई नए चेहरों को उतारा है। साथ ही, कुछ विधायकों की सीट भी बदली गई है। मनीष सिसोदिया, जो पटपड़गंज से विधायक थे, अब जंगपुरा से चुनाव लड़ेंगे। वहीं राखी बिड़ला को मंगोलपुर से हटाकर मादीपुर से टिकट दिया गया है। पटपड़गंज से अवध ओझा को उतारा गया है।
इसके अलावा, कुछ सीटों पर पुराने विधायकों को हटाकर नए उम्मीदवार बनाए गए हैं। उदाहरण के लिए:
– कृष्ण नगर सीट: विधायक एस.के. बग्गा को हटाकर उनके बेटे विकास बग्गा को टिकट मिला।
– चांदनी चौक सीट: विधायक प्रहलाद सिंह साहनी के बेटे पूरनदीप सिंह को मौका दिया गया।
– नरेला सीट: विधायक शरद चौहान की जगह दिनेश भारद्वाज को उतारा गया।
– आदर्श नगर सीट: पवन शर्मा को हटाकर मुकेश गोयल को टिकट दिया गया।
किसे हटाया गया?
AAP ने जिन 18 विधायकों के टिकट काटे, उनमें कई प्रमुख नाम शामिल हैं। इनमें से कुछ नाम हैं:
– मटियाला: गुलाब सिंह यादव की जगह कांग्रेस से आए सुमेश शौकीन को टिकट दिया गया।
– सीलमपुर: अब्दुल रहमान की जगह जुबेर अहमद।
– किराड़ी: ऋतुराज झा की जगह बीजेपी से आए अनिल झा।
– त्रिलोकपुरी: रोहित मेहरौलिया की जगह अंजना पारचा।
– शाहदरा: राम निवास गोयल की जगह जितेंद्र शंटी।
एंटी-इनकंबेंसी पर प्रहार
आम आदमी पार्टी ने विधायकों के टिकट काटने का फैसला जनता के फीडबैक और सर्वे के आधार पर किया है। पार्टी द्वारा कराए गए एक सर्वे में यह पाया गया कि कई मौजूदा विधायकों के खिलाफ जनता में असंतोष है। विशेषज्ञों का मानना है कि AAP की सरकार के प्रति नाराजगी से ज्यादा नाराजगी विधायकों के काम को लेकर है। यही वजह है कि अरविंद केजरीवाल ने पुरानी टीम को बदलने का फैसला किया।
नो-रिपीट फॉर्मूला…
‘नो-रिपीट फॉर्मूला’ के तहत नए उम्मीदवारों को मौका देकर AAP ने एक बड़ा राजनीतिक दांव खेला है। इस रणनीति के फायदे हैं:
1. नई ऊर्जा: नए चेहरों से जनता को नई उम्मीदें मिलती हैं।
2. सत्ता विरोधी लहर का समाधान: पुराने विधायकों को हटाकर पार्टी एंटी-इनकंबेंसी से बच सकती है।
3. पार्टी के लिए सकारात्मक छवि: यह संदेश जाता है कि पार्टी प्रदर्शन के आधार पर फैसले लेती है।
हालांकि, इस फॉर्मूले के नुकसान भी हैं:
1. पुराने विधायकों की नाराजगी: टिकट काटने से असंतोष बढ़ सकता है।
2. नए चेहरों का अनुभव: नए उम्मीदवारों का अनुभव कम हो सकता है, जो चुनाव में चुनौती बन सकता है।
राजनीतिक रणनीति या मास्टरस्ट्रोक?
अरविंद केजरीवाल का यह कदम एक मास्टरस्ट्रोक के रूप में देखा जा सकता है। उन्होंने यह दिखा दिया है कि वह सत्ता को बनाए रखने के लिए बड़े और सख्त फैसले लेने से पीछे नहीं हटते। यह कदम दिल्ली के चुनावी समीकरणों को बदल सकता है। अरविंद केजरीवाल ने जनता के बीच अपनी सरकार की छवि को मजबूत बनाए रखा है। बिजली, पानी, शिक्षा, और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर उनकी सरकार ने बड़े सुधार किए हैं। हालांकि, विधायकों के खिलाफ नाराजगी को देखते हुए यह जरूरी था कि पार्टी नई रणनीति अपनाए।
आम आदमी पार्टी का यह कदम एक बड़े राजनीतिक संदेश के रूप में देखा जा सकता है। 18 विधायकों के टिकट काटकर और नए चेहरों को मौका देकर AAP ने यह दिखा दिया है कि वह सत्ता विरोधी लहर को हल्के में नहीं ले रही। यह रणनीति AAP के लिए कितना कारगर साबित होगी, यह तो चुनावी नतीजे ही बताएंगे। लेकिन इतना तय है कि अरविंद केजरीवाल की यह पहल दिल्ली की राजनीति में एक नई बहस जरूर छेड़ देगी।