उत्तर प्रदेश में इन दिनों राजनीतिक दलों के बीच पोस्टर वार तेज़ हो गया है, और यह विवादित स्लोगन अब राज्य की राजनीति का अहम हिस्सा बन गए हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा दिए गए ‘बटेंगे तो कटेंगे’ वाले बयान के बाद से, भाजपा और विपक्षी दलों के बीच पोस्टर लगाने का सिलसिला जारी है। यह पोस्टर न केवल राजनीतिक विचारधारा को दर्शाते हैं, बल्कि एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी को भी दर्शाते हैं। हाल ही में लखनऊ में समाजवादी पार्टी (सपा) द्वारा लगाए गए पोस्टर ने एक नई हलचल पैदा कर दी है, जिसमें पार्टी की एकता की बात की गई है और विरोधियों को जवाब देने के लिए स्लोगन का इस्तेमाल किया गया है।

 

मुख्यमंत्री योगी का बयान

सबसे पहले यह समझते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ‘बटेंगे तो कटेंगे’ बयान था क्या, और यह कैसे उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा मुद्दा बन गया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह बयान समाज को एकजुट करने की कोशिश में दिया था, लेकिन विपक्ष ने इसे एक नफरत फैलाने वाली और विभाजनकारी टिप्पणी के रूप में लिया। यह बयान विशेष रूप से भाजपा और अन्य हिंदू संगठनों द्वारा जाति और धर्म की पहचान पर आधारित चुनावी रणनीतियों का हिस्सा बन गया। योगी के इस बयान का विरोध करते हुए, विपक्ष ने इसे प्रदेश की सामूहिक एकता के खिलाफ बताया।

सपा का जवाब

सपा ने इस बयान का विरोध करते हुए लखनऊ में सड़कों पर कई पोस्टर लगाए। इन पोस्टरों में ‘पीडीए की होगी जीत, एकता की होगी जीत’ जैसे स्लोगन का इस्तेमाल किया गया। ‘अली भी है बजरंगबली भी है, संग पीडी के एकता की टोली भी है, जिसे देख विरोधियों में मच गई खलबली भी है’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके सपा ने यह संदेश देने की कोशिश की कि पार्टी केवल धार्मिक पहचान और सामूहिक एकता की बात करती है। पार्टी ने यह भी कहा कि अगर सभी दल एकजुट होकर काम करें तो समाज में सच्ची एकता और समृद्धि आ सकती है। सपा के प्रवक्ता अभिषेक बाजपेई द्वारा लगाए गए पोस्टर में न केवल पीडीए की जीत की बात की गई, बल्कि पार्टी के एकता के प्रतीक के रूप में ‘अली’ और ‘बजरंगबली’ का जिक्र किया गया। यह पोस्टर राजनीतिक ध्रुवीकरण और धार्मिकता के बीच एक नाज़ुक संतुलन की ओर इशारा कर रहा था, जो राज्य की सियासत का अहम हिस्सा बन चुका है। इस प्रकार के स्लोगन का उद्देश्य न केवल मुख्यमंत्री के बयान का विरोध करना था, बल्कि समाजवादी पार्टी के सामूहिकता और धार्मिक सहनशीलता के दृष्टिकोण को भी पेश करना था।

अन्य पोस्टर और स्लोगन

सपा के अन्य नेताओं ने भी अपनी-अपनी तरह से विरोधी दलों के बयानबाजी का जवाब दिया। लोहिया वाहिनी के उपदेश मृत्युंजय यादव ने पोस्टर में ‘जुड़ेंगे तो बढ़ेंगे’ का स्लोगन लगाया, जो एकता और सामूहिक प्रगति का प्रतीक था। इसी प्रकार, सपा नेता रणजीत सिंह ने ‘बांटने वाले बांट नहीं पाएंगे, काटने की बात करने वाले 27 में मुंह की खाएंगे’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। इन स्लोगनों का उद्देश्य यह था कि भाजपा और अन्य विरोधी दलों के विभाजनकारी प्रयासों के बावजूद समाजवादी पार्टी का उद्देश्य हमेशा से समाज की एकता और शांति बनाए रखना है। यहाँ पर एक और दिलचस्प बात यह देखने को मिलती है कि ये पोस्टर केवल एक राजनीतिक बयानबाजी का हिस्सा नहीं थे, बल्कि इनसे जुड़े संदेश समाज में सामूहिकता और सामाजिक न्याय की महत्वपूर्ण बातें भी सामने आईं। समाजवादी पार्टी के नेता यह संदेश दे रहे थे कि वे किसी भी प्रकार की विभाजन की राजनीति के खिलाफ हैं और उनके लिए सभी समुदायों और धर्मों के बीच समानता और एकता ही सबसे महत्वपूर्ण है।

राजधानी में पोस्टर वार

लखनऊ, जो उत्तर प्रदेश की राजधानी है, में ऐसे पोस्टरों का उभरना इस बात का प्रतीक है कि राज्य की राजनीति में यह एक नई प्रवृत्ति बन चुकी है। यह कोई पहला मौका नहीं है जब लखनऊ की सड़कों पर राजनीतिक दलों ने इस तरह के पोस्टर लगाए हैं। पहले भी यहां पर ’27 के सत्ताधीस’ और ’27 के खेवनहार’ जैसे स्लोगन देखने को मिले हैं। ये स्लोगन हमेशा से समाजवादी पार्टी के लिए अपने चुनावी अभियान के महत्वपूर्ण हिस्से रहे हैं, जिसमें उन्होंने समाज के विभिन्न तबकों से जुड़े मुद्दों को प्रमुखता दी है। इसी प्रकार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी भाजपा और समाजवादी पार्टी के नेताओं के बीच पोस्टर युद्ध देखने को मिला था। इन पोस्टरों के जरिए दोनों पार्टियों ने अपनी-अपनी राजनीतिक विचारधारा को प्रकट किया था और अपने विरोधियों के खिलाफ आरोप लगाए थे। इस प्रकार के पोस्टर वार ने राज्य की राजनीति को और भी उग्र बना दिया है।

 

समाजवादी पार्टी का उद्देश्य

सपा का मुख्य उद्देश्य हमेशा से समाज के हर वर्ग के अधिकारों की रक्षा करना रहा है। पार्टी ने अपने पोस्टरों के जरिए यह संदेश देने की कोशिश की कि अगर राज्य में भाजपा सत्ता में आती है, तो वे सामूहिकता को तोड़ने का काम करेंगे। वहीं सपा का दावा है कि वह समाज के हर वर्ग को साथ लेकर चलने वाली पार्टी है। यह संदेश खासकर उन मतदाताओं के लिए था जो किसी न किसी वजह से भाजपा की विभाजनकारी राजनीति से असंतुष्ट हैं।

उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में…

उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में इस तरह के पोस्टर वार यह दिखाते हैं कि राजनीति अब केवल भाषणों तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह अब सड़क स्तर पर भी सुलझाए जा रहे हैं। पार्टी नेता अपनी बात रखने के लिए अब सड़कों पर भी उतरे हैं और अपने विरोधियों को चुनौती देने के लिए पोस्टरों का सहारा ले रहे हैं। यह पोस्टर केवल राजनीति का हिस्सा नहीं, बल्कि एक गहरे संदेश का रूप भी ले चुके हैं, जो समाज के हर वर्ग को प्रभावित करता है। अब देखना यह होगा कि इन पोस्टर वार का चुनावी परिणाम पर क्या असर पड़ता है, और किस पार्टी को जनता का विश्वास मिलता है।

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